मौत से बचकर जब हम नवी मुम्बई अपने मामाजी के निवास पर पहुँचे तो 30 जून की मध्य रात्रि के पौने एक बज चुके थे। पूरा परिवार ही हमारी प्रतीक्षा कर रहा था। थोड़ी देर के धमाल के बाद मैं तो चले गया सोने लेकिन बिटिया ने रौनक लगाए रखी। जब मेरी आँख खुली तो 1 जुलाई की दोपहर होने को आई थी।
टॉफ़ियों का व्यापारी कुछ शुरूआती उलझनों के बाद आखिर मुझे पहचान ही गया और उसने इतने मासूम प्रश्न दागे कि कई बार बगलें झांकने की नौबत आई।
भारतीय सेना में रह चुके मामाजी के इस चार पीढ़ियों वाले, 16 सदस्यीय परिवार में अब तक यह महाशय सबसे छोटे थे। पिछले वर्ष इनकी भाँजी ने मुस्कुराहट बिखेरी थी, जिसका परिचय करवाने के लिए इनके उतावलेपन ने मुझे भी गुदगुदाया।
सड़क मार्ग से की गई इस यात्रा की संक्षिप्त जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें»

पारिवारिक माहौल में जैसे-जैसे समय मिलता गया वैसे ही विवेक रस्तोगी, युनूस खान, रश्मि रविज़ा, अनिता कुमार, घुघूती बासूती, नीरज गोस्वामी से फोन पर सम्पर्क कर मुलाकात की संभावनायों पर विचार करते मुम्बई में एक जुलाई बीत गयी।
बताया तो हमने किसी को नहीं कि मुलाकात कैसे और कहाँ की जाए, लेकिन सोच रखा था कि अपनी गाड़ी से आए हैं तो मिलने भी इसी मारूति वैन से जाएंगे भले ही वह मुम्बई का दूसरा छोर क्यों ना हो! बशर्ते सुविधाजनक हो मौसम। बस फिर क्या था 2 जुलाई की दोपहर होते -होते हम चल पड़े ‘पड़ोस’ ही में रहने वालीं अनिता कुमार जी की ओर।
इससे पहले, अनिता कुमार जी से रूबरू होने के दो मौके हम गवां चुके थे। एक मौका था पिछले वर्ष की मुम्बई यात्रा के दौरान, जब बार बार वादा करने के बावज़ूद मैं मिल नहीं पाया था। दूसरा मौका था उनके इकलौते सुपुत्र के विवाह का, जिसमें शामिल होने के लिए सभी तैयारियाँ होने के बाद भी, अपनी माता जी की अस्वस्थता के चलते, अंतिम क्षणों में मुझे भिलाई से होने वाली यात्रा रद्द करनी पड़ी थी। उसके बाद फोन पर हुई बातचीत में उन्होंने दसियों ब्लॉगर्स को निमंत्रण-पत्र भेजे जाने के बाद भी विवाह समारोह पर किसी भी ब्लॉगर के ना पहुँचने पर धीमे स्वर में कहा था कि ‘(ब्लॉगिंग का) यह आभासी संसार, आभासी ही बना रह गया।’ हालांकि उनके कॉलेज वेबसाईट की एक आकस्मिकता के कारण हमारे सुपुत्र महाशय ज़रूर मिल आए थे।

मुम्बई की सीमा में आते ही बीएसएनएल के जीपीआरएस ने काम करना शुरू कर दिया था। आखिर वह अब एम टी एन एल के गठबन्धन में रोमिंग पर था। इसी की मदद लेते हुए, अपने आकलन के अनुसार अनिता जी अपने कॉलेज में ही होंगी, यह सोच कर 2 जुलाई की दोपहर साढ़े ग्यारह बजे हम पिता-पुत्री चल पड़े सायन-पनवेल एक्सप्रेस वे होते हुए वाशी पुल की और। टोल प्लाजा पर 30 रूपये का भुगतान कर हम जा पहुंचे गोवांडी होते हुए चेम्बूर।
करीब सवा बजे कॉलेज के पहले ही एक स्थान पर गाडी रोक मैंने मोबाइल पर संपर्क किया तो पता चला कि अनिता जी तो कुछ मिनट पहले ही घर की ओर रवाना हुई हैं और इस वक्त वाशी पुल वाले टोल प्लाजा पर मासिक शुल्क का भुगतान कर रही हैं। आर के स्टूडियो को पार करते हुए हम उलटे पैर लौट गए। अनिता जी हमारा इंतज़ार कर रही थीं वाशी टोल प्लाजा पर।

अब तक उनके जो छायाचित्र देखे थे, उनके आधार पर एक उम्रदराज़ महिला की सी छवि बना रखी थी मैंने उनकी।लेकिन आमना-सामना होते ही मेरा भ्रम टूटा। पता नहीं ऐसा क्यों होता है कि ब्लॉग प्रोफाईल में जो चित्र लगे होते हैं, वास्तविकता में वह ब्लॉगर उससे कहीं अधिक युवा होता है।

औपचारिक अभिवादनों के आदान-प्रदान के पश्चात बिटिया ने अनिता जी की कार में बैठना पसंद किया और मैं अकेला उनकी कार का पीछा करते हुए जा पहुंचा कोपरखैरणे, जिसे अब भी कोपेनहेगन कहने की भूल कर बैठता हूँ। करीब सवा दो बजे हम थे आठवीं मंजिल पर बने अनिता जी के फ्लैट में। सबसे पहले उन्होंने चिंता की दोपहरिया भोजन की। हम तो बिन बताए जा धमके थे। उन्होंने किसी रेस्टारेंट को फोन कर ऑर्डर नोट कराया और फिर दौर शुरू हुया बातों का। घर -परिवार- ब्लॉग्गिंग -जीवन संघर्ष -यात्रा संस्मरण पर बातें चल ही रही थीं कि मुझे अपने एक मरीज का ख्याल हो आया! मैंने उत्सुकता जाहिर की तो अनिता जी ले गईं मुझे उसके पास। वह था अनिता जी का कम्प्यूटर!
वेजीटेबल पुलाव, थाई मंचूरियन, आलू-गोभी, रायता सहित बढ़िया सी स्वीट डिश वाले भोजन की समाप्ति पश्चात बिटिया चले गई निद्रा देवी के आगोश में और मैंने आसन जमाया उस कम्प्यूटर के सामने। जिस स्थान पर वह कम्प्यूटर बाबा का ठिकाना था उसके ऊपर-नीचे, दायें-बाएं मानव-मनोविज्ञान की किताबें भरी पडी थी। ठीक मेरी पीठ पीछे वाशी का विहंगम दृश्य नजर आ रहा था। कम्प्यूटर बाबा का इलाज़ तो मैंने 1100 किलोमीटर दूर बैठे अपने घर से कई बार किया था लेकिन उस दिन उसकी नब्ज़ पकड़ में आई। अभी कुछ मरहम-पट्टी कर ही रहा था कि एक आवाज आई –हैलो अंकल! पलट कर देखा तो बेसाख्ता मुंह से निकला पड़ा -हाय रोमा! वह थी अनिता जी की बहू रोमा। पहचानता कैसे नहीं? कई बार बात कर चुका था, चित्रों में देख चुका था।
उधर बिटिया और रोमा की चहचहाहट शुरू हो गई, इधर अनिता जी ने शाम के नाश्ते का इंतजाम कर लिया। बातें होती रहीं। अनिता जी ने मुम्बई के कुछ और ब्लोगर्स का जिक्र किया, जिनमें नाम तो सभी जाने-पहचाने थे किन्तु दो-चार के ब्लोग पर शायद ही कभी नज़र डाली हो मैंने। हालिया मुलाकाती मनीषा पाण्डेय जी की भी चर्चा हुई। अनीता जी ने जानना चाहा कि और किनसे मिलने का कार्यक्रम है? तो मैंने कुछ नाम गिनाए। इससे पहले कि अंधेरा हो अनिता जी ने बालकनी से ही दूर की कुछ इमारतों की सिलसिलेवार जानकारी दी और एक ओर इशारा कर बताया कि उस बिल्डिंग में घुघूती बासूती जी रहती हैं।
हमने रात्रि-भोजन के लिए स्पष्ट मना कर दिया था। अनिता जी को मैंने उनके कम्प्यूटर के लिए एक LAN Hub की सिफ़ारिश की थी। उनका प्रस्ताव आया कि वे हमें साथ लेकर दुकान पर जाएंगी और LAN Hub लेने के बाद सायन-पनवेल हाईवे तक छोड़ भी आएंगी। चलते-चलते हमने निकाला अपना कैमरा और लगा दिया उसे अपने काम पर। अब यह बात अलग है कि उनमें से एक भी चित्र अब मेरे पास मौज़ूद नहीं।
अनिता जी अपनी कार में सवार थीं, साथ में थी बिटिया और कार चला रही थीं उनकी बहू, रोमा। मैं अकेला अपनी वैन में उनके पीछे-पीछे। कोपरखैरणे के सेक्टर 13 में डी-मार्ट से LAN Hub लेने के बाद उन्होंने हमें सायन-पनवेल हाईवे पर विदाई दी और जब हम खारघर अपने घर पहुँचे तो समय हो रहा था रात के साढ़े ग्यारह का।
इस तरह बीता हमारा पहला सक्रिय दिन, मुम्बई में! कैसा बीता ये तो आप नीचे टिप्पणी कर बता ही देंगे 😀 फिर अपने घर में, सफ़ेद घर वाले सतीश पंचम से मुलाकात हुई
मेरी वेबसाइट से कुछ और ...
जून-जुलाई 2010 में की गई इस यात्रा का संस्मरण 20 भागों में लिखा गया है. जिसकी कड़ियों का क्रम निम्नांकित है.
मनचाही कड़ी पर क्लिक कर उस लेख को पढ़ा जा सकता है
- सड़क मार्ग से महाराष्ट्र यात्रा की तैयारी, नोकिया पुराण और ‘उसका’ दौड़ कर सड़क पार कर जाना
- ‘आंटी’ द्वारा रात बिताने का आग्रह, टाँग का फ्रेंच किस, उदास सिपाही और उफ़-उफ़ करती महिला
- ‘पाकिस्तान’ व उत्तरप्रदेश की सैर, सट्टीपिकेट का झमेला, एक बे-सहारा, नालायक, लाचार और कुछ कहने की कोशिश करती ‘वो’
- खौफ़नाक आवाजों के बीच, हमने राह भटक कर गुजारी वह भयानक अंधेरी रात
- शिरड़ी वाले साईं बाबा के दर से लौटा मैं एक सवाली
- नासिक हाईवे पर कीड़े-मकौड़ों सी मौत मरते बचे हम और पहुँचना हुया नवी मुम्बई
- आखिर अनिता कुमार जी से मुलाकात हो ही गई
- रविवार का दिन और अपने घर में, सफेद घर वाले सतीश पंचम जी से मुलाकात
- चूहों ने दिखाई अपनी ताकत भारत बंद के बाद, कच्छे भी दिखे बेहिसाब
- सुरेश चिपलूनकर से हंसी ठठ्ठे के साथ कोंकण रेल्वे की अविस्मरणीय यात्रा और रत्नागिरि के आम
- बैतूल की गाड़ी, विश्व की पहली स्काई-बस, घर छोड़ आई पंजाबिन युवती और गोवा का समुद्री तट
- सुनहरी बीयर, खूबसूरत चेहरे, मोटर साईकिल टैक्सियाँ और गोवा की रंगीनी
- लुढ़कती मारूति वैन और ये बदमाशी नहीं चलेगी, कहाँ हो डार्लिंग?
- घुघूती बासूती जी से मुलाकात
- ‘बिग बॉस’ से आमना-सामना, ममता जी की हड़बड़ाहट, आधी रात की माफ़ी और ‘जादू’गिरी हुई छू-मंतर
- नीरज गोस्वामी का सत्यानाश, Kshama की निराशा और शेरे-पंजाब में पैंट खींचती वो दोनों…
- आधी रात को पुलिस गश्ती जीप ने पीछा करते हुए दौड़ाया
- किसी दूसरे ग्रह की सैर करने से चूके हम!
- वर्षों पुरानी तमन्ना पूरी हुई, गुरूद्वारों के शहर नांदेड़ में
- धधकती आग में घिरी मारूति वैन से कूद कर जान बचाई हमने
… और फिर अंत में मौत के मुँह से बचकर, फिर हाज़िर हूँ आपके बीच
वाह जी,
अनिता जी से बहुत बढिया मुलाकात रही।
टोल प्लाजा का मुंबई में रेट बढ गया है।
धन्यवाद
यह संस्मरण पढकर काफ़ी अच्छा लगा।
आप की अनिता जी से मुलाकात हो गई,अभी हमारी होना शेष है। कभी वह दिन भी आएगा। अब यात्रा कि चित्र पहला अवसर मिलते ही इंटरनेट खाते में डाल देना चाहिए। या खुद के मेल बॉक्स में लोड कर देने चाहिए।
आपकी मेहरबानी से आज संगणक की तबियत ठीक हुई तो आपकी यात्रा की सारी पोस्ट पढ़ डाली … मज़ा आ रहा है ( सही है पढ़ने वाले को तो मज़ा ही आयेगा , बिना जोखिम उठाये ) हाँ अजंता न जा पाने का अफसोस है वरना अजंता की गुफाओं पर इस पुरातत्ववेत्ता के साथ कुछ चर्चा हो जाती । वैसे हम लोग जलगाँव से अजंता गये थे , वहाँ से भी करीब है । इस यात्रा विवरण से प्रेरित हुआ हूँ .. सोच रहा हूँ 25 साल पहले की अपनी अजंता -एलोरा यात्रा की एक पोस्ट लगा ही दूँ .. ।
तो अनिता जी से मुलाक़ात आखिर हो ही गयी -बधायी !
तो अनिता जी से मुलाक़ात आखिर हो ही गयी -बधायी !
अच्छा जी,
रोचक !
आगे का अहवाल ..?
ओह पर आपने तो हमें कहा था कि अनिताजी ने टोलनाके पर ही पकड़ लिया और आगे जाने ही नहीं दिया 😀
happy janmashtmi.
http://WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
अभी मेरी मुलाकात भी
अनीता कुमार जी के
संगणक महोदय से
होनी शेष है
देखते हैं कब होती है
तभी होगी जब उनसे
दूसरी बार मिलेंगे।
बेहतरीन लेखन के बधाई
पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर-पधारें
आज की पोस्ट बहुत प्यारी सी लग रही है जी।
प्रणाम
उत्सव चौक का चित्र तो अविस्मरणीय है. Simply, out of this world.
yad aa gaya ji, aao logon ne mehfil me baith kar hi mujhse phone pe baat ki thi.
aap to mil liye anita ji se, apni mulakat abhi baki hai.
vivran badhiya chal raha hai.
लिखते तो आप बढिया हैं ही…. पर चित्रों से लेख को जीवंत बना देते हैं.
पाबला जी आप से मिलना मेरे लिए और मेरे कंप्युटर के लिए भी एक अविस्मरणीय आनंदित अनुभव रहा। बिटिया से मिलना तो और भी अच्छा लगा, घर के आगंन में चहचहाती सी नन्ही चिड़िया मेरे घर आगंन को गुलजार कर गयी। पहले गुरुप्रीत से और अब बिटिया से मिल कर एक ही बात जहन में उठी कि दोनों कितने जहीन और शालीन हैं। इतने अच्छे संस्कार दिये हैं आप ने दोनों को कि आप को बधाई देने को मन करता है। मुझे अफ़सोस है कि मैं ने खुद खाना नहीं बनाया होटल से मंगवाया, अगर पहले से थोड़ा अंदेशा होता तो जरूर इंतजाम कर के रखती। आप की अगली विसिट का इंतजार है…:)
अविनाश जी मुझे भी आप से दूसरी मुलाकात का इंतजार है।
बहुत अच्छा लगा आपकी और अनिता जी से मुलाकात के बारे में,सोचता हूं,आप दोनों या आप दोनो से में किसी से मुलाकात कब होगी?
अविनाश जी से मिलने के बहुत से अवसर बने,बस कभी सम्पर्क ही नहीं हो पाया ।
पाबला जी,आप की यात्रा बहुत सारे मानवीय पक्षों को समेटती हुई चलती है ,बहुत सुन्दरता से व्यक्त हुई है .बधाई.
रोचक संस्मरण … लगता है कि हम भी आप ही के साथ थे…
बहुत ही बढ़िया विवरण….अनीता जी की शख्सियत ही ऐसी हैं कि पल भर में दूरी मिट जाती है और अपनापन जाग उठता है.
दूरी के कारण…वेस्टर्न मुंबई के ब्लोगरों से मिलना रह गया…कोई नहीं…. अगली बार आइये तो सबसे मुलाकात जरूर कीजिये.
इस विधा का शुक्रगुजार हूं जिससे "अनजाने अपने" हो जाते हैं।
बढ़िया चल रही है गड्डी ।
अगली बार मुंबई लगता है लंबी छुट्टी लेकर जाना पड़ेगा 🙂 पहले से कई लोग थे अब और जुड़ गए ब्लाग से ॰
क्या कहने सर जी ……… मज़ा आ गया ………आगे की कहानी जल्द बताइए !
हम्म तो आप चेम्बूर होते हुए वाशी टोल नाके तक पहुंचे वाया आर.के स्टूडियो?
मेरा एक आर्टिकल 'रोंग नम्बर फ्रेंड'की नायिका नायक वहीँ रहते हैं.तुहिना मित्र और शुभोजीत मित्र दादा. आप उनके घर के सामने से गुजरे?
गंदे! मेरा मेसेज तो दे देते कि आपकी रोंग नम्बर फ्रेंड ने आप ('दोनों' बाद में बोलना था) के लिए प्यार भेजा है.
हा हा हा
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देर से आये…रोचक मिलन रहा..पढ़कर अच्छा लगा.
@ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
बिल्कुल सही
चित्र पहला अवसर मिलते ही इंटरनेट खाते में डाल देना चाहिए
@ शरद कोकास
25 साल पहले की अजंता -एलोरा यात्रा पर पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी
@ Vivek Rastogi
कभी कभी ऐसा भी होता है 🙂
@ anitakumar
अफ़सोस का अंदेशा होता तो जरूर आपको खबर करने के बाद आते 🙂
@ काजल कुमार Kajal Kumar
उत्सव चौक भी अविस्मरणीय है
@ DEEPAK BABA
सही है
चित्रों से लेख जीवंत हो उठता है
@ vinay
मुलाकात नवम्बर में होगी 🙂
@ rashmi ravija
दूरी के कारण नहीं, अन्य व्यस्ततायों के कारण मुंबई के ब्लोगरों से मिलना रह गया
अगली बार मुलाकात जरूर होगी
@ Gagan Sharma, Kuchh Alag sa
मैं भी इस विधा का शुक्रगुजार हूं
इस पोस्ट को पढ़ कर कई यादें ताजा हो उठी हैं, कितना कुछ बदल गया है इन दो सालों में। घुघूती जी अब वर्ली रहने चलीं गयीं हैं, मेरे घर एक नन्हीं सी कली खिल गयी है जिसकी किल्कारियों में खुद को भी खो बैठी हूँ।
अब आप के पास मारुती वैन नहीं है और आप पूना से आ कर लौट जाते हैं। 🙁
सच्ची!
अनीता कुमार जी के बारे में सुन तो रखा है पर आज ज्यादा जान पाया हूँ.उनका स्नेह आपको मिला,बड़े भाग्यशाली हैं !
अनिता कुमार जी का प्यार आपको मिला,भाग्यशाली ठहरे !
टिप्पणीकर्ता संतोष त्रिवेदी ने हाल ही में लिखा है: भूले अपना देश !