पिछले सप्ताह नाईट शिफ्ट करनी पड़ी. मौक़ा बढ़िया था कि दिन के समय वह काम निपटा दिए जाएँ जो लंबे समय से रुके पड़े हैं. पहला नंबर आया अपनी मारुती ईको की सर्विसिंग का.
पंजाब से लौटने के बाद शहर से दूर बाहर जाना हुआ नहीं. इसलिए आलस्य करते गए एक बार सारी जांच करवा लेने का. गाड़ी को सर्विसिंग के लिए थमा अपन मारुति सर्विस सेंटर में कस्टमर लाउन्ज में पत्रिकाओं के पन्ने पलटते, टीवी देखते, ऊंघते रहे.
चार घंटे बाद खबर की गई कि गाड़ी ‘रेडी’ है. हमने एक बार गाड़ी का मुआयना किया और यह देख दंग रह गया कि रेडिएटर में डलने वाला कूलैंट का रंग हरा है. जब मैंने पूछा कि ये हरे रंग का कूलैंट क्यों डाला? तो उपहास भरा ज़वाब आया कि हरा ही तो डलता है, नीला पीला नहीं. मैंने बताया कि पेट्रोल इंजिन वाली कारों में पीला और डीजल कारों में हरा कूलैंट डाला जाता है तो फिर ज़वाब मिला कि हम तो हरा ही डालते आये हैं हमेशा और कूलैंट का रंग तो हरा ही होता है.
तब मैंने एक की बाँह पकड़ी और बाहर की दीवार पर लगाए गए बोर्ड की ओर इशारा करते पूछा कि ये बोर्ड आप ही की तरफ से लगवाया गया है ना? ज़ाहिर है, बंदे की ज़बान ना खुली. घर आ कर पहले तो यह व्यथा कथा फेसबुक पर लिखी और फिर सारा हरा कूलैंट खाली करवा कर स्थानीय बाज़ार से पीले रंग का कूलैंट डलवाया.

ईको की सर्विसिंग ख़त्म होने के इंतज़ार में
तब तक कई संदेश आ चुके थे कि इस गड़बड़झाले पर कुछ लिखा जाए. राणा सिंह जी का मज़ेदार कथन दिखा कि …. नया ब्लाग या वेब्साइट लांच करें ‘ज़िंदगी के झमेले’ जिसमे ऍसी ही पोस्ट लगाने की व्यवस्था हो 😀
जब लिखने लगा तो याद आई बचपन की बातें. हम किसी बस, जीप, कार में सफर करते तो कुछ दूरी के बाद बोनट खोल कर बताया जाता कि इंजन गरम हो गया है और फिर किसी कनस्तर/ छागल में साथ लाये गए पानी को ‘इंजन’ में डाला जाता. पानी कम पड़ता तो आसपास की नदी/ नाले/ कुएँ/ तालाब से पानी लाया जाता. तब कहीं जा कर गाड़ी बढ़ती आगे. ऐसे दृश्य हिंदी फिल्मों में भी अक्सर दिखते. वो तो बहुत बाद में पता लगा कि इंजन की गरमी काम करने के लिए रेडिएटर नाम की एक चीज है जिसमें पानी डाला जाता है.
ट्रक, जीप, कारों के व्यवसायिक उपयोग में लगे लोग आज भी अपने सहायकों को निर्देश देते मिल जाते हैं कि …”तेल-पानी चेक कर लेना ओए…” इसमें पानी यही रेडिएटर का पानी है.
तकनीक का विकास
जैसे जैसे तकनीक का विकास हुआ, यह झमेला ख़त्म हो गया. रेडिएटर में सादा पानी डालना जोखिम वाला काम माना जाने लगा. फिर सादे पानी की बजाए कुछ रसायन मिले पानी का उपयोग सुरक्षित हो गया. तब से मैंने देखा कि इस रेडिएटर में डाला जाने वाला पानी, कूलैंट कहलाया जाने लगा और उसका रंग हरा है. लेकिन तकनीक के पिटारे में यह बात निकल कर आई कि हर इंजन का निर्माण विशिष्ट कार्यों और क्षमताओं के हिसाब से होता है तथा उनकी कार्यप्रणाली व निर्माण सामग्री भिन्न भिन्न होती है, इसलिए रेडिएटर का कूलैंट भी अलग अलग होना चाहिए.
इंजन को ठंडा रखने की इस रेडिएटर प्रणाली में प्रयुक्त पानी इंजन ब्लॉक, सिलेंडर हेड, कूलैंट पंप, थर्मोस्टेट और रेडियेटर से हो कर गुजरता है. इन सभी में करीब आधा दर्जन विभिन्न धातुओं का प्रयोग किया जाता है. बेहद रफ़्तार से बहता गर्म पानी जब इनके संपर्क में आता है तो धातुओं के क्षरण/ जंग के लिए एक बढ़िया नुस्खा हो सकता है.
जंग एक दोधारी तलवार है: जंग के बढ़ते जाने से अंतत: रेडिएटर से जुड़े पाइप्स, इंजन ब्लॉक के महीन छिद्रों का अंदरूनी घेरा कम होते जाएगा, संकरा होते जाएगा और इधर अपेक्षाकृत पतली धातु के बने रेडिएटर में, धातु के कमजोर होते जाने से रिसाव का ख़तरा बढ़ जाएगा. इससे बचने के लिए एक रसायन, इथाइलीन ग्लाइकॉल मिला कर ऐसा घोल बनाया गया जो पानी के उबलने का तापमान कम करे और जंग से बचाए.
लेकिन फिर अलग अलग मुद्दे उठ खड़े हुए. यूरोप के कार निर्माताओं ने ऐसा कूलैंट चाहा जो सिलिकेट से मुक्त हो और फिर आया कम सिलिकेट वाला कूलैंट. जिसे पहचानने के लिए उसमें गुलाबी रंग मिलाया गया.
कूलैंट की पहचान कैसे
अब इन अलग अलग कूलैंट की पहचान कैसे हो? इसके लिए कृत्रिम रूप से रंग मिलाये गए और उन रंगों के कोड से पहचान बनी कि किस रंग का कूलैंट किस वाहन के लिए होना चाहिए. जापानी आये एक नए रसायन मिश्रण, नए फॉर्मूले वाला कूलैंट और इसकी पहचान बना इसमें मिला पीला रंग.
जनरल मोटर्स ने प्रचलन से हट कर जंग से लड़ने के लिए नारंगी रंग का एक अलग ही उत्पाद बनाया. इस तकनीक को कहा गया Organic Acid Technology. -OAT इस कूलैंट का प्रयोग करने से पारंपरिक 2 वर्षों में कूलैंट बदलने की बजाए 5 वर्षों में बदलने की ज़रूरत होती है. ऐसे बेहतरीन परिणाम देने के बावजूद इसका प्रयोग उन कारों के लिए नुकसानदायक है जो इस तरह के कूलैंट के लिए नहीं बनीं हैं.
अब? अब तो हरा, पीला, नीला, गुलाबी, नारंगी और भी ना जाने किन किन इंद्रधनुषी रंग के कूलैंट मिल रहे बाजार में. लेकिन सिर्फ रंग के बलबूते भी कूलैंट चुनना नादानी है क्योंकि कई बार एशियाई देशों में उत्पादित एक रंग का कूलैंट, अमेरिकी, यूरोपियन देशों में उसी रंग वाले कूलैंट वाले फॉर्मूले से भिन्न होता है.
आईये कुछ और गहरे चला जाए.
पारंपरिक कूलैंट
पारंपरिक कूलैंट हरे रंग का होता है जिसमें जंग से लड़ने के लिए अकार्बनिक लवण; बोरेट, नाइट्रेट, नाइट्राइट, फॉस्फेट, मॉलिब्डेट और सिलिकेट मिलाए जाते हैं. यह तांबा, पीतल, इस्पात, लोहे और एल्यूमिनियम से बनी पुरानी इंजन प्रणालियों के लायक माना जाता है. अधिकतर यह डीज़ल इंजन में प्रयुक्त किए जाते हैं. भारी डीज़ल इंजिन्स के लिए यह बैंगनी रंग का भी हो सकता है.
OAT कूलैंट
कार्बनिक अम्ल प्रौद्योगिकी -OAT कूलैंट आम तौर पर नारंगी या लाल रंग के होते हैं. पूरी तरह से निष्प्रभावी कार्बनिक अम्ल और अज़ोल्स मिला यह कूलैंट बोरेट, नाइट्राइट और सिलिकेट मुक्त होने के कारण एशियाई देशों के गर्म वातावरण के लिए अनुशंसित किया जाता है. फास्फेट मुक्त होने के कारण यूरोपियन और उत्तरी अमेरिकी देशों के लायक भी है. यह उच्च तापमान वाले एल्यूमीनियम इंजन की उत्कृष्ट सुरक्षा करता है.
हाइब्रिड कूलैंट
जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर है यह पारंपरिक और OAT , दोनों के गुणधर्म को मिला कर बनाया जाता है. रंग में यह भी नारंगी या पीले रंग का होता है.
जल ही जीवन कूलैंट का
अब सवाल यह उठता है कि कूलैंट में मिलाया जाने वाला पानी कैसा हो? पहले तो परवाह नहीं की जाती थी कि पानी खारा है या मीठा, नल का है या नदी का, कठोर है या नरम! लेकिन मैग्निशम, कैल्शियम लवणों वाला पानी निश्चित तौर पर पपड़ी और गाद इकट्ठा करता जाता है जो इंजन को ठंडा रखने के काम में अवरोधक हैं..क्लोराइड तो है ही कुख्यात जंग के लिए. तो सही यही है कि कूलैंट को कुछ और तरल बनाने के लिए डिस्टिल्ड वाटर का उपयोग हो तो यह सारी चिंताएं नहीं होंगी.
कूलैंट की मिलावट
इन तमाम रंगों के गड़बड़झाले में एक बात का ख़ास ध्यान रखने की ज़रुरत है. दो अलग अलग रंगों वाले कूलैंट को मिला कर कभी प्रयोग ना करें. इसका परिणाम यह होगा कि दोनों के अलग अलग रसायन आपस में प्रतिक्रिया कर गाद और जंग पैदा कर देंगे जो अंतत: इंजन को नुकसान ही पहुँचाएँगे. अगर आपको लगता है कि किसी अन्य रंग वाले कूलैंट का उपयोग करना है तो सारा पुराना कूलैंट निकाल, पानी से सारी प्रणाली साफ़ कर नए रंग वाला कूलैंट डालें.
संक्षेप में कहा जाए तो हरे रंग का कूलैंट Cast Iron से बने इंजन के लिए चलेगा लेकिन पीले रंग का कूलैंट Aluminium से बने इंजन के लिए है. आम तौर पर डीजल इंजिन Cast Iron से बनाये जाते हैं और पेट्रोल इंजन Aluminium से. उलझन हो तो किसी भी वाहन के स्पेसिफिकेशन में देखा जा सकता है इंजन की धातु के बारे में.
मेरी मारुति ईको का इंजन, एल्युमीनियम से बना है इसलिए उसमें पीले रंग का ही कूलैंट डलवाया मैंने.
इस संबंध में मारुति कंपनी को शिकायत भी दर्ज़ करवा दी है. अगर गलती मानी तो ठीक वरना उपभोक्ता अदालत का रूख किया जाएगा.
इस कूलैंट कलर कथा के लिए इंटरनेट पर मैंने कुछ और जानकारी लेने की कोशिश की लेकिन ना तो भारतीय क्षेत्र की कोई विशेष जानकारी मिली और ना ही किसी भारतीय मोटर कार कंपनी ने अपनी वेबसाईट्स पर किसी तरह की जागरूकता दिखाई है.
आपकी कार में कूलैंट किस रंग का है ?
© बी एस पाबला
इस महत्वपूर्ण जानकारी के लिए आपका शुक्रिया
टिप्पणीकर्ता PN Subramanian ने हाल ही में लिखा है: टिन्डिस (Tyndis) जिसे पोन्नानि कहते हैं
शुक्रिया सर
आप द्वारा कूलेंट पर जो शोध किया है प्रंशसनीय है . सत्य तो यह है कूलेंट का रंग हरा ही मान लिया गया है जैसे नीला डिटर्जेंट सर्फ़ है और पीला निरमा
आपका कहना भी सही है
आपने बढ़िया जानकारी दी है. मैं स्वयं नहीं जानता कि किस गाड़ी में कौन सा कूलेंट डलना है. यह कहने पर कि फलां गाड़ी का कूलेंट दे दो तो, पेट्रोल पंप वाले लड़के जो दे दें लगता है वही सही जानते होंग. क्योंकि एक बार मैंने काफी जानने की कोशिश तो मैनुअल में कुछ नहीं मिला सिवाय इसके कि recommended कूलेंट डालूं जो कि उनकी वर्कशॉप वाले देंगे और उनकी साइट पर कुछ मिला नहीं. नेट पर ढूंढा पर ज्यादा दूर तक नहीं जा पाया. मुझे लगता है कि कारें बनाने वाले खुद ही इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे 🙁
बात आपकी सही है काजल जी. मैनुअल्स में भी सतही जानकारी ही होती है.
निर्माता खुद ही जागरूक नहीं तो ग्राहक क्या करे.
जैसी कि आपकी फेसबुक पोस्ट से उम्मीद बंधी थी,आपने कूलेंट के बारे में एक बेहतरीन लेख जनहित में जारी किया, शुक्रिया।
शुक्रिया राजेश जी
जानकारी देती पोस्ट. वैसे हमारे पास तो ह्युंडई की इयान है जिसकी सर्विसिंग का जिम्मा भाई का है.
आभार आपका
बहुत अच्छी, बढ़िया, और काम की जानकारी देने के लिए धन्यवाद।
उपभोक्ता अदालत जरूर जाइयेगा, ताकि किसी और के साथ ऐसा ना हो।
और अदालत के फैसले से आम जनता को भी जागरूक किया जा सकें।
हालांकि, अदालती कार्रवाही समय और धन खाती हैं, लेकिन मेरी राय में आप अदालत जरूर जाना।
थैंक्स।
चन्द्र कुमार सोनी
http://www.chanderksoni.com
जायेंगे ज़रूर जायेंगे
बेहतरीन जानकारी, हम तो बे’कार हैं पर कारधारी मित्रों को आपकी बताई जानकारी देंगे।
आभार आपका
हमारी गाड़ी में तो कूलैंट की जरुरत ही नहीं है 🙂 उम्दा पोस्ट कथ्य और तथ्य के साथ।
टिप्पणीकर्ता चलत मुसाफ़िर ने हाल ही में लिखा है: सरगुजा के व्याध : कुकूर असन घुमबो त खाबो साहेब
शुक्रिया मुसाफिर महाशय
अपनी वैगनार पेट्रोल/सीएनजी है. उसमें पीला कूलेंट डलता है.
कूलेंट के बारे में पढ़ने पर एक बात और याद आई कि कूलेंट का एक मुख्य घटक है ईथीलीन ग्लाइकोल जो कार्बनिक रसायन है और इसका स्वाद मीठा होता है. ये एक धीमा ज़हर है जो बड़ी कठिनाई से पकड़ में आता है. कई मामलों में ये हत्याओं में इस्तेमाल हो चुका है और किसी करीबी की हत्या करने के लिए लोग इसे मीठे पेय या भोजन में मिला देते हैं. इसके असर से पेट खराब होने लगता है और रोगी की हालत बिगड़ती जाती है. डाक्टर हर तरह का उपचार और जांच करते हैं लेकिन कुछ पता नहीं चलता. कोई शक भी नहीं करता कि रोगी को ये रसायन दिया गया होगा.
ये ज्ञान बहुत पहले डिस्कवरी चैनल पर आने वाले फोरेंसिक प्रोग्राम से मिला था.
टिप्पणीकर्ता Nishant ने हाल ही में लिखा है: Narcissus – नरगिस की कहानी
ये तो खतरनाक मामला है
वाह…सुन्दर पोस्ट…
समस्त ब्लॉगर मित्रों को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं…
शुभकामनाएं आपको भी
बहुत उपयोगी एवं गहन जानकारी देने के लिए आभार.आम तौर पर लोग इस तरह कि बातों पर ध्यान नहीं देते.आपके लेख से पता चला कि मामला कितना गंभीर है.
टिप्पणीकर्ता Rajeev Kumar Jha ने हाल ही में लिखा है: दीर्घजीवन और पालतू जानवर
शुक्रिया राजीव जी
लाभप्रद जानकारी के लिए आभार
शुक्रिया रौशन जी
बहुत ही शानदार और ज़रूरी लेख . आपका कोई जवाब ही नहीं पाब्ला जी.