हिंदी फिल्मों के महान पार्श्व गायकों में से एक (स्वर्गीय) मुकेश द्वारा गाये गए गीत मुझे हमेशा ही पसंद आये हैं. इन सब में भी मेरा सबसे पसंदीदा गीत है “…जीना यहाँ, मरना यहाँ, इसके सिवा जाना कहाँ…“
इंटरनेट पर पनपे परिचय से पारिवारिक मित्र बन चुके अजय कुमार झा, ऑफिस के समय में जब मुझसे मोबाईल पर संपर्क करते हैं तो इस गीत को कालर ट्यून के रूप में सुनते ही भावुक हो जाते हैं.
लेकिन इंटरनेट से अपरिचित, रंगीन मिजाज़ हमारे एक मित्र भरसक कोशिश करते हैं कि दिन के समय फोन करने से बचा जाए. वे ज़्यादातर शाम के समय संपर्क करते हैं जब उन्हें कालर ट्यून सुनाई पड़ती है “…ये शाम मस्तानी मदहोश किये जाए…”
कॉल लेते ही उनकी उत्साह भरी आवाज़ आती है “कहाँ है यार! आ जा, महफ़िल जमी हुई है… मस्तानी शाम ने दिल खुश कर दित्ता…”
इधर इंटरनेट पर कई मित्र ऐसे हैं जिनकी सुबह ही रात को होती है. 😀 मौक़ा पड़े तो आधी रात को भी कॉल कर लेते हैं. और जब उन्हें कालर ट्यून सुनाई पड़ती है “…खोया खोया चाँद… खुला आसमान… आँखों में सारी रात जायेगी… तुमको भी कैसे नींद आएगी…” तो बेचारे झेंप कर खिसियाई सी हँसी हंस देते हैं.
एक सुबह आखिर अजय जी से रहा नहीं गया. जब उन्हें कालर ट्यून मिली “…वाहे गुरू… वाहे गुरू…” तो सबसे पहला सवाल उनका यही था कि दिन-रात, समय के मिजाज़ के हिसाब से ये अलग अलग कालर ट्यून कैसे बजती है?
तब मैंने उन्हें बताया कि ना सिर्फ समय के हिसाब से बल्कि कॉल करने वाले के हिसाब से भी कालर ट्यून जाती है बंदे को. जैसे कि बहन के लिए “…फूलों का तारों का… सबका कहना है.. एक हज़ारों में मेरी बहना है…”
कई ऐसे अभिन्न मित्र हैं जिन्होंने संकट के दिनों में तन-मन-धन-गन से सहयोग किया है उनके लिए कालर ट्यून स्थाई है “…एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तो… ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तो…”
कई विघ्नसंतोषी ऐसे हैं जिन्होंने दोस्ती का चोला पहन रखा है वे सुनते हैं “…मिले न फूल तो काँटों से दोस्ती कर ली… इसी तरह से बसर हमने ज़िंदगी कर ली…”
अब तक अजय जी का धैर्य ज़वाब दे चुका था. अपनी झल्लाहट दबाते हुए मेरी बात काटते उन्होंने पूछा कि यह सब होता कैसे है? लेकिन मैं तो अपनी ही रौ में बहे जा रहा था. अरे! अजय जी, एक ख़ास के लिए तो मैंने ख़ास कालर ट्यून रखी है “…तुम आ गए हो नूर आ गया है… नहीं तो चराग़ों से लौ जा रही थी…”
अब अजय जी ने अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर ही दी कि नहीं बताना है तो ना बतायें. तब मैं संभला और चैट पर लिंक दिया बी एस एन एल की वेबसाईट का http://bsnl.onmobile.com:9000/bsnltunes/
फिर उन्हें बताया कि इस लिंक पर रजिस्ट्रेशन करते ही आपके मोबाईल पर पासवर्ड आ जाएगा जिसे इस लिंक पर जा कर अपने खाते के लिए उपयोग में लाया जा सकता है
बाक़ी सब तो आसान है. गीत, फ़िल्म, कलाकार आदि के सहारे गीत की तलाश कर, उसे कंप्यूटर पर ही सुन कर, हफ्ते के किसी ख़ास दिन, महीने के किसी ख़ास दिन, किसी विशेष व्यक्ति के लिए कालर ट्यून बनाया जा सकता है. सुविधा शुल्क है 1 रूपये प्रतिदिन (30 रूपये मासिक) और प्रत्येक रिंगटोन की कीमत है 12 रूपये मासिक.
तब जा कर अजय जी की जिज्ञासा शांत हुई. इधर अपना रिकॉर्ड फिर शुरू हो गया ‘फोनबुक के अलावा अनजान नंबरों को सुनाई पड़ता है “… अज़नबी… तुम जाने पहचाने से लगते हो…” और दिल दुखा चुके संबंधियों को समर्पित है “… कसमे वादे प्यार वफ़ा सब,,, बातें हैं बातों का क्या… कोई किसी का नहीं ये झूठे… नाते हैं नातों का क्या…”
वैसे अगर आप चाहें तो खुद अपनी ही आवाज़ में कालर ट्यून बना सकते हैं. फिर चाहे वो कोई गीत हो या फिर कोई डायलॉग.
कैसी रही यह कालर ट्यून गाथा?
मेरे लिए कौन सी है सर जी ???
वैसे आज जानकारी बहुत काम की मिली … मैं भी अभी चेक करता हूँ …
टिप्पणीकर्ता Shivam Misra ने हाल ही में लिखा है: हैप्पी बर्थड़े … अम्मा !!
हम तो एक ही में मगन हैं।
वाह ! पाबला जी ! आपका का भी जबाब नहीं |

क्या क्या बढ़िया बढ़िया जुगाड़ तलाश कर रखतें है
टिप्पणीकर्ता Ratan Singh Shekhawat ने हाल ही में लिखा है: आदर पाने की पात्रता
मैं तो अपना मोबाइल बिना कालरट्यून के ही चलाता हूं, हाँ दूसरे मोबाइल की कालरट्यून सुनना जरूर अच्छा लगता है.
टिप्पणीकर्ता indian citizen ने हाल ही में लिखा है: पड़ोसी के यहाँ आग लगे, हमें क्या!
अच्छी जानकारी। आभार 🙂
रिलायंस की लूट के चलते ये सेवा बंद करानी पड़ी हमें तो………
वैसे आज पहली बार मोबाइल पर आपकी साईट खुली है
धन्यवाद।
मैं तो अपना मोबाइल बिना कालरट्यून के ही चलाता हूं, हाँ दूसरे मोबाइल की कालरट्यून सुनना जरूर अच्छा लगता है. मेरे लिए कौन सी है सर जी ???
सुन्दर आलेख के लिए बधाई…
बेहतरीन जानकारी। काम तो अपना भी एक-ही से चल जाता है। आभार।
टिप्पणीकर्ता हिमांशु ने हाल ही में लिखा है: निर्वाण षटकम्: आचार्य शंकर
वाह जी आप तो खूब रंग बिरंगी धुनें सुनवाते हैं. अपुन तो उसी पुरानी टर्रन टर्रन पर ही निर्भर हैं 🙂
टिप्पणीकर्ता काजल कुमार ने हाल ही में लिखा है: कार्टून:- फ़ायदा होना चाहिए, इज़्जत की कोई बात नहीं
यह तो एकदम नयी और रोचक जानकारी है..ऐसी स्कीम यहाँ कहीं नहीं सुनी…
लगता है कोलेज जाने वाले लडके-लड़कियों में काफी लोकप्रिय होगी ,
टिप्पणीकर्ता Alpana ने हाल ही में लिखा है: रंग आसमान के…
दिल को देखो चेहरा न देखो चेहरोने लाखो को लुटा, दिल सच्चा और चेहरा जूठा…
अरे वाह ……. अभी फ़ोन घुमा चेक करता हूँ कि हमारे लिए कौन सी लगाईं ?
कही यह तो नहीं ?
बहुत दिनों के बाद मिले हो तुम ….. हा हा
चेकिंग नाउ …………
टिप्पणीकर्ता प्राइमरी का मास्टर ने हाल ही में लिखा है: आखिर क्यों जरुरी है? आत्मकथ्य लिखना एक शिक्षक के लिए!
हम तो पुरानी साधारण वाली पर ही अटके हुए हैं, ये अच्छी जानकारी मिली वैसे ।
टिप्पणीकर्ता विवेक रस्तोगी ने हाल ही में लिखा है: विचारों पर विचार