मित्रों ने बहुत शिकायत की कि कई दिनो से कुछ लिखा नहीं! दरअसल मंशा यह भी थी कि अब अपने ब्लॉगों को www.BSPABLA.com पर ले जाने के बाद ही कुछ लिखूँगा, किन्तु 11 वेबसाईट्स की योजना में इतना रम गया कि यह इरादा टलते ही जा रहा। आज कुछ मूड़ बदल गया तो सोचा पिछले दिनों हुई कुछ ब्लॉगरों से मुलाकातों की बात कर ली जाए।
पारिवारिक हादसों के चलते पुणे से घर आई बिटिया को वापस पुणे जाना था। लगातार कई दिनो तक भिलाई-पुणे की रेलों में सीटों की प्रतीक्षा सूची के कन्फ़र्म ना हो पाने के कारण यह तय किया गया कि नागपुर से पुणे की बस ली जाए। कुछ और समय बिटिया के साथ बिताने की नीयत से मैं भी नागपुर तक चले गया।
पहले भी कोशिश कर चुका था, इन दिनों नागपुर में निवासरत एक ब्लॉगर दलसिंगार यादव जी से मुलाकात की। इस बार फिर उन्हें संपर्क किया मैंने भिलाई से निकलने के पहले। तय हुआ कि नागपुर में पहली फुरसत पाते ही उनसे मिला जाए।
यादव जी से मिलने की उत्सुकता उस दिन और बढ़ गई थी जब उन्होंने एक अलग सी तारीफ़ भरी बात कह दी थी कि हिंदी का शिक्षक मैं हूं और इतनी अच्छी हिंदी आप कैसे लिख लेते हैं? अब अगर एम.ए./ एल.एल. बी./ पी.एचडी/ भारतीय रिज़र्व बैंक से उप महाप्रबंधक (राजभाषा) के पद से सेवा निवृत्त/ बैंकिंग व भाषा तथा पशुपालन पर 9 पुस्तकें/ इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार प्राप्त व्यक्ति दो शब्द भी तारीफ़ के कह दें तो सकपकाना तो है ही हमें!
7 जनवरी को बालकृष्ण अय्यर जी का स्नेहिल निमंत्रण था स्थानीय थिएटर में रंगशिल्पी के आयोजन में उपस्थिति देने का। वहाँ पहले से उपस्थित शरद कोकास जी और संजीव तिवारी जी से भी मुलाकात हुई। कार्यक्रम देर से प्रारंभ होने की स्थिति में तिवारी जी और मैं इस समारोह का आनंद नहीं ले सके क्योंकि दोनों को ही आकस्मिक पारिवारिक कार्यों के कारण पुकारा जा चुका था।
बिटिया को नागपुर तक पहुँचाने की इच्छा थी मेरी, सो रेल आरक्षण करवा लिया मैंने नागपुर तक। नागपुर से पुणे हेतु बस का आरक्षण पहले ही हो चुका था। मेरा अनुभव रहा पिछली कई यात्रायों के दौरान कि महाराष्ट्र में बसों का शानदार नेटवर्क है और आरक्षण की सुविधा भी इंटरनेट पर बहुत सुविधाजनक है।
pan style=”font-weight: bold;”>उदाहरण प्रजातांत्रिक व्यवस्था में मिलना दुर्लभ ही होगा।” तब तो फिर जो हमारी बात इस मुद्दे पर शुरू हुई तो बहुत समय तक वातानूकलित डब्बे के उस क्षेत्र में डरावनी सी शांति छाई रही। (इस पूरे षड्यंत्र को यहाँ पढ़ा जा सकता है। गूगल की मेहबानी से अन्य जानकारियाँ यहाँ हैं।)
अपनी कार से उतरते यादव जी को देख फिर वही बात कहने की इच्छा हुई कि प्रोफाईल में लगे चित्र की तुलना में एक युवा व्यक्तित्व सामने खड़ा था। औपचारिक अभिवादन के बाद अभी हमारी बातें किसी दिशा की ओर जा पातीं इससे पहले संदेश मिला कि बस इस स्थान तक आज नहीं आ पाएगी, किसी दूसरे स्थान तक हमें पहुँचाया जाएगा। यादव जी ने हमें वहाँ तक पहुँचाने का आग्रह किया तो मना ना किया जा सका।
कार में बैठे बैठे ही जो बातचीत हुई उसमें मेरी पहली जिज्ञासा थी कि उत्तर प्रदेश की बजाए नागपुर ही क्यों चुना उन्होंने सेवा निवृत्ति के बाद? तो उन्होंने बताया कि सेवाकाल का अधिकतर समय महाराष्ट्र में ही बीता और बच्चों की आजीविका भी यहीं…देश के बीचों बीच है और सुरक्षित भी। इसलिए नागपुर भा गया लेकिन अपना मूल प्रदेश बहुत याद आता है।
झटपट बातें ब्लॉगिंग के कुछ अनछुए मुद्दों पर भी हुई। इस बीच आ पहुँचा वह स्थान जहाँ से बस मिलनी थी। पिछले दिनों अनिता कुमार जी ने इच्छा जाहिर की थी दलसिंगार जी से बात करने की तो मैंने बताया था कि दो दिन बाद आपकी बात करवाऊँगा। याद आया तो अनिता जी को सम्पर्क कर दो ब्लॉगरों की पहली बातचीत भी करवा दी। बिटिया को बस से रवाना कर समय देखा तो शाम के पौने छह, वापसी की ट्रेन है 6:25 की।
हम फिर सवार हो गए यादव जी की कार में, कुछ देर का साथ और पाने की चाहत में। कुछ क्षणों के लिए रूकी कार से उतर स्टेशन के सामने ही यादव जी से विदा लेते हुए नए कैमरे ने अपना काम फटाफट किया और निकल आई यह
तस्वीर।
स्टेशन की ओर दौड़ लगाई तो पता चला ट्रेन आएगी डेढ़ घंटा देरी से, फिर देर बढ़ कर हो गई तीन घंटे!
लेकिन भारतीय रेल की इस लेटलतीफ़ी से मुझे मिला एक खजाना!! जिसका खुलासा अगली किसी पोस्ट में
ये मुलाकातें ही हैं जो रंग लाती हैं।
आप ने अगली पोस्ट के लिए फिर सूत्र छोड़ा है। कब आ रही है?
खजाने के बारे में बताईये, लेकिन जल्दी..
आपके यात्रा संस्मरण पढ़कर ऐसा लगता है कि जैसे जहाँ जाते हो वहीँ प्यार की अलख जगाते हो ! ऐसा स्नेह भाव और दूसरों के प्रति लगाव, बिरलों को मयस्सर होता है !
पाबला जी आप स्नेह बाँटनें में कामयाब रहेंगे ! मेरी हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार करें ब्लॉग सरदार !
भाई पाबला जी,
27 फ़रवरी के आपके सफ़र नामे को पढ़ ही रहा था कि सतीश सक्सेना जी ने वही बात लिख दी जो मैं लिखने वाला था। स्नेहिल और अपनेपन के व्यवहार के धनी आपसे मिलकर किसी को भी खुशी ही होगी।
आपने आलोक पुतुल के लेख 'नदियां बिक गई पानी के मोल' का लिंक देकर तो ऐसी जानकारी दी है जो राजनेता और उद्योगपतियों के असली चेहरे को बेनकाब करता है और किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को उद्वेलित करता है। आप प्यार तो बांटते ही हैं, जानकारी का ख़जा़ना भी आपके पास है। सक्रिय रहें। मेरी शुभकामना।
सतीश जी से पूर्णतय: सहमत ।
निश्चित ही पुरी जैसा खज़ाना तो नहीं होगा ।
इंतजार रहेगा ।
स्नेहिल यादें। बहुत बहुत बधाई। हमे भी इन्तजार रहेगा।
खजाने की प्रतीक्षा भी रहेगी।
इसी प्रकार मुलाकातो का दौर चलता रहे।
यही यादे हम सब को फ़िर से मिलने की तमन्ना जगाती हे, बहुत सुंदर लगा, आप का यह यात्रा विवरण अगले लेख का इंतजार हे…
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
यादव जी जैसे महानुभवी से बात करना तो अपने आप में एक आनंददायक अनुभव था, पर यादव जी ने जो आप के लिए कहा उस से भी सौ प्रतिशत सहमत हैं। आगे की पोस्ट का इंतजार रहेगा
आप सअचमुच भगीरथ हैं जहाँ जाते हैं प्रेम की गंगा उतार लाते हैं!!
रोचक विवरण…अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा
वाह जी सर.. ये बातें, मुलाकातें यूँ ही चलती रहें..
बधाई…
यात्रा संस्मरण महत्वपूर्ण है….
रोचक !
अच्छा लगा,आपकी पोस्ट पड़ कर ।
मेल मिलाप चलता रहे…भाई चारा बना रहे…
खजाना???
दुनिया में कम न होगें ये जिन्दगी के मेले।
ये मुलाकातें ही तो साथ महकती रहती हैं ताउम्र …..
तसवीरें बहुत अच्छी लगीं …..
बधाई ….!!